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विश्वं॑ प्रती॒ची स॒प्रथा॒ उद॑स्था॒द्रुश॒द्वासो॒ बिभ्र॑ती शु॒क्रम॑श्वैत् । हिर॑ण्यवर्णा सु॒दृशी॑कसंदृ॒ग्गवां॑ मा॒ता ने॒त्र्यह्ना॑मरोचि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvam pratīcī saprathā ud asthād ruśad vāso bibhratī śukram aśvait | hiraṇyavarṇā sudṛśīkasaṁdṛg gavām mātā netry ahnām aroci ||

पद पाठ

विश्व॑म् । प्र॒ती॒ची । स॒ऽप्रथाः॑ । उत् । अ॒स्था॒त् । रुश॑त् । वासः॑ । बिभ्र॑ती । शु॒क्रम् । अ॒श्वै॒त् । हिर॑ण्यऽवर्णा । सु॒दृशी॑कऽसन्दृक् । गवा॑म् । मा॒ता । ने॒त्री । अह्ना॑म् । अ॒रो॒चि॒ ॥ ७.७७.२

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:77» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सप्रथा) सब प्रकार से (विश्वं) सम्पूर्ण विश्व को (प्रतीची) प्रथम (अस्थात्) उत्पन्न करनेवाली (रुशत्) दिव्यशक्ति (वासः) उस दीप्तिवाले स्वरूप (उत्) और (शुक्रं) बल को (बिभ्रती) धारण करती हुई जो (अश्वैत्) सर्वत्र परिपूर्ण हो रही है, (हिरण्यवर्णा) दिव्यस्वरूप (सुदृशीकसंदृक्) सर्वोपरि दर्शनीय सर्वज्ञानी (गवां माता) सब ब्रह्माण्डों की जननी और (अह्नां नेत्री) सूर्यादि सब प्रकाशों की प्रकाशक (अरोचि) सबको प्रकाशित कर रही है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो दिव्यशक्ति सम्पूर्ण विश्व को धारण करके कोटानुकोटि ब्रह्माण्डों को चला रही है, वही दिव्यशक्तिरूप परमात्मा सब ब्रह्माण्डों की जननी और वही सबका अधिष्ठान होकर स्वयं प्रकाशमान हो रहा है ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सप्रथा) सर्वथा (विश्वम्) सकलं जगत् (प्रतीची) पूर्वम् (अस्थात्) उत्पादयित्री (रुशत्) दिव्यशक्तिः (वासः) तादृशदीप्तिमत् स्वरूपं (उत्) तथा (शुक्रम्) बलं च (बिभ्रती) धारयन्ती (अश्वैत्) सर्वत्र व्याप्नोति, या (हिरण्यवर्णा) दिव्यस्वरूपा (सुदृशीकसन्दृक्) सर्वोपरिदर्शनीया सर्वज्ञा (गवाम् माता) अखिलब्रह्माण्ड-जननी तथा च (अह्नां नेत्री) सूर्यादिसमस्त-प्रकाशानामपि प्रकाशिका (अरोचि) सर्वं प्रकाशयन्ती विराजते ॥२॥